Saturday, April 21, 2007

PARDESH

मेरे मन ये बता दे तू
किस ओर चला है तू ?
क्या पाया नहीं तूने ?
क्या ढ़ूंढ़ रहा है तू ?

जो है अनकही , जो है अनसुनी, वो बात क्या है बता ?
मितवा ऽऽऽऽऽऽ, कहें धड़कनें तुझसे क्या, मितवा ऽऽऽऽऽऽऽऽऽ, ये खुद से तो ना तू छुपा

जीवन डगर में, प्रेम नगर में
आया नजर में जब से कोई है
तू सोचता है! तू पूछता है !
जिसकी कमी थी, क्या ये वही है ?
हाँ ये वही है, हाँ ये वही है ऽऽऽऽऽऽऽऽ
तू इक प्यासा और ये नदी हैऽऽऽ
काहे नहीं, इसको तू, खुल के बताये
जो है अनकही .................ना तू छुपा

तेरी निगाहें पा गयी राहें
पर तू ये सोचे जाऊँ ना जाऊँ
ये जिंदगी जो, है नाचती तो
क्यूँ बेड़ियों में हैं तेरे पाँव?
प्रीत की धुन पर नाच ले पागलऽऽऽऽ
उड़ता अगर है, उड़ने दे आंचलऽ
काहे कोई, अपने को, ऐसे तरसाए
जो है अनकही .................ना तू छुपा

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